harum scarum vicissitudes reflect the reckless changes that occur in fortune, every mere being in the world gets through this blizzard of fortune and luck. we get entangled, fight back and face it..
Friday, April 13, 2012
कुछ तो...
डर सा था उस नये जहान से
दोस्ति ना थी उस खुले आस्मान से
पर लग रहे थे नये
फ़िर ना जाने क्यो
कुछ तो पीछे छूट रहा था
मंज़िल की खुशी के ऊपर
रास्ता खो जाने का सैलाब
कही उठ रहा था
आज के सन्नाटे मे भी
कल कि हसी गून्ज रही थी
उस नयी सुबह के शोर मे
मन क सूरज डूब रहा था
चार पल थे बचे
जैसे ज़िन्दगी के
हर पल जी लेने का
सुरूर भी ख्वाब लग रहा था
रफ़्तार वक़्त की
फ़लक छू रही थी
वो उङ्ती हुई पतन्ग भी
वापस नीचे लौट रही थी
रेत हाथो से बह चुकी थी
सिर्फ़ कुछ उल्झी सी
लकीरे सिमटी रह गयी थी
उम्मीद की किरन से
वो नया समा रोशन हो रहा था
फ़िर ना जाने क्यो
कुछ तो पीछे छूट रहा था।
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